रंग-बिरंगी धरा हुई है
रंग-रँगीला अम्बर
दशों-दिशाएँ फाग सुनाएँ
नाचें मंथर-मंथर।
डाल-डाल पर मस्ती छाई झूम रहे वन-उपवन
अलसी खनके और चने के पदचापों में रुन-झुन।
महक रहा महुआ आमों का अंग-अंग बौराया
अहा! पलाशों की फुनगी पर होली का मद छाया।
कोयल घोल रही कलरव में अपना मधुरिम गान
सुन आँगन-घर बाग-विपिन से नीरवता छूमंतर।....
रंग-बिरंगी धरा हुई है रंग-रँगीला अम्बर...
तन-मन में उन्माद जगा है बाल-वृद्ध-योवन के
सम्मोहन भर रहा कुलांचें पंख लगे बचपन के।
मनभावन के रंग-रचे हैं मनभावन के सपने
रूप-गाँव के मेले में प्रिय ढूँढें अपने-अपने।
छलक रहीं हैं नेह-कमोरीं गैल-गली-दालान
भीग रहे रँग-रस-रिमझिम में सबके पावन अंतर ।....
रंग-बिरंगी धरा हुई है रंग-रँगीला अम्बर ।....
ढ़ोल बजाते जुम्मन चाचा और बटेश्वर चँग है
हरबिंदर ने भी बाँधा कस अपना मृदुल मृदँग है ।
लगा एंथनी भी कुछ गाने एक अनोखी धुन से
सा-रे-गा-मा-पा-धा-नी सब साथ लिए चुन-चुन के।
सारे स्वर मिल करने निकले कटुता का संधान
हुई प्रवाहित समरसता की सलिल-सलिल अभ्यंतर।....
रंग-बिरंगी धरा हुई है रंग-रँगीला अम्बर ।....
नगर-गाँव घट-औघट-पनघट सब पर मधु छाया है
तीक्ष्ण-धूप में जैसे सुख का बादल गहराया है।
बैर-भाव सब हुए तिरोहित सब ही हिले-मिले हैं
चुटकी-भर के इस गुलाल से कितने सुमन खिले हैं।
वर्षों की तकरारें क्षण में भूल गईं सब ध्यान
प्रीति-फुहारें झरतीं झर-झर रह-रहकर तदनंतर।...
रंग-बिरंगी धरा हुई है रंग-रँगीला अम्बर ।...
©️ सुकुमार सुनील