मीत प्रथम अभिसार अमर हो
यह सुरम्य संसार अमर हो।
नेह-तन्तु ने तुमको जोड़ा
वह जीवन का तार अमर हो।।
पुनः पहाड़ों से निसृत यह, बहे प्रेम की गंगा अविरल
झरते रहें नेह-निर्झर नित, पग-पग पर सरसे ध्वनि कल-कल।
मानवती हो घड़ी प्रणयिनी, मधुरिम यह रसधार अमर हो।
पथ हो सहज सुगम सुंदरतम, खिले रहें मन-सुमन तुम्हारे
सदा समर्पण साथ निभाए, चाह, सतत आरती उतारे।
ठहरे रहें रूचिर मधुऋतु क्षण, यह शुचि अनहद प्यार अमर हो।
निशि-बासर हो गति प्रगतिमय,सुख-समृद्धि भरे कुलांचें
पावन शीतल साथ तुम्हारा ,दूर करे कटुता की आँचें।
एक-दूसरे की आँखों में, पाई जो, मनुहार अमर हो।
मीत प्रथम अभिसार अमर हो...
©️सुकुमार सुनील
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