शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

गीत (एक तुम्हारा होने भर को...)

 आज बहुत हारा हारा हूँ

अपनेपन ने ललकारा हूँ।

बाहर हर मुश्किल जीती है

भीतर खुद का ही मारा हूँ।।


शायद मुझसे भूल हुई थी बिना शर्त नेह बाँटा था

छल से युक्त विषम खाई को कोमल स्वप्नों से पाटा था।

हाँ हाँ बड़ी भूल थी मेरी सबको स्वयं सरीखा समझा

इस दिमाग से चलते युग में मैं  उर-पग से था आ धमका।।

 

खाता-बहियों वाले युग में स्मृतियों को स्वीकारा हूँ।......


कहाँ पता था? मुझको आगे इतनी वृहद विषम खाई है

मेरे हिस्से स्रोत-बिंदु से ही पग-पग ठोकर आई है।

अवरोधों को दरकिनार कर हर गुत्थी सुलझाता आया

छद्म-विजय के मोहपाश में खुद को ही उलझाता आया।। 


सारे पर्वत लाँघ गया पर तृण से हारा हरकारा हूँ।......


बहुत मगन था यही सोचकर तुम सप्तम् सोपान चढ़ोगे

तेरा-मेरा भेद भुलाकर साझा लक्ष्य विधान करोगे।

किया पराया तुमने लेकिन तुच्छ सफलता पर इतराकर

इतना भला हँसे तुम इतना नत मम् शीश ज़रा सा पाकर।।


धैर्य धरो! मैं बुझा नहीं हूँ धूल-धूसरित अंगारा हूँ।......


खैर! विजय हो तुम्हें मुबारक मैं प्रसन्न पराजित होकर

बहुत कठिन संबंध बचाना कुछ भी पाकर कुछ भी खोकर।

लघुता का भी अपना कद है प्रभुता को झुकना पड़ता है

जग की रक्षा हेतु ईश को भी बौना होना पड़ता है।।


एक तुम्हारा होने भर को हर समझौते पर वारा हूँ।......

©️ सुकुमार सुनील

कोई टिप्पणी नहीं:

Exam Preparation – परीक्षा की तैयारी और AI से सफलता का नया रास्ता | Smart Study Tips

 Exam Preparation – परीक्षा, पढ़ाई और AI : सफलता की नई क्रांति प्रस्तावना परीक्षाएँ हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चाहे स्कूल- कॉले...