01-11-2021
देख सको तो देखो जग में नफ़रत थोड़ी प्यार बहुत है।
एक नमूना लेकर देखो प्रेमी अपने डलियों भर हैं
जिनसे अपना मन-मुटाव है वे तो चंद अँगुलियों पर हैं।
गाँव गली घर आँगन चौखट अपनी गैय्या अपना बछरा
देखो खेत मेंड़ बट-छाया कितना अपनापन है पसरा।
होंगे तो कुछ गैर यहाँ बस अपनों का अम्बार बहुत है।
देख सको तो...
थोड़ा चलो और मुड़ देखो सबकुछ अपना सा दिखता है
जाकर दूर देश में कल्लू सबको अपना ही लिखता है।
मिट्टी अपनी पानी अपना अपना वतन और है भाषा
सदा बिछड़कर सीखी हमने अपनेपन की है परिभाषा।
कुछ रिश्तों में बँधे हुए हम किंतु बड़ा संसार बहुत है।
देख सको तो ...
माना सिंधु बहुत है खारा अग्रगण्य पर नीर लवण से
आईं-गईं बहुत संस्कृतियां सदा सृजन ही विजित क्षरण से
नाहक उलझो दुर्गंधों से आओ बाहर खुली हवा लो
यह भी कोई व्याधि? भला तुम इसकी भी क्या खाक दवा लो?
नदिया घाटी पर्वत उपवन खुशबू घुली बयार बहुत है।
देख सको तो ...
दृष्टि नहीं संकुचित मीत तो फिर क्यों पीड़ाएं पाते हो?
इस पूरे चर-अचर जगत को नयनों में कमतर लाते हो।
इच्छाएँ बलवती बहुत हैं इनको ऊर्ध्वगमन तक लाओ
सात समंदर मुस्काएँगे पर तो तुम अपने फैलाओ।
जितनी हो सामर्थ्य उड़ो तुम अम्बर का विस्तार बहुत है ।
देख सको तो ...
©️ सुकुमार सुनील
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