शनिवार, 30 सितंबर 2023

गीत : आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में

 विलख रहा मन-मख्खन तेरी याद में

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में।


सुनकर आहट जन्मदिवस की मन फूला न समाए

फूल टूण्डला की स्टेशन हर कोई हो जाए। 

हाथी घोड़ा और पालकी जय-जय कृष्ण-कन्हाई

बाला-बाला बनी राधिका हर माँ जसुदा माई। 

गली-गली औ कुँज-कुँज है रटना एक लगाए

केवल आस तुम्हारी कान्हा अपने आशाबाद में। 

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...


आओ कान्हा तुम्हें खिलाएँ मकखनपुर की गुजिया

हीरालाल की कुल्फी खाकर बाजे खूब मुरलिया।

मामा होटल गजक जैन की या मिठ्ठन के पेड़े

और नहाना हो तो चलना नहर झाल तुम जेड़े।

जमुना जी कर रहीं किलोलें सोफीपुर के तट पर

आजा गायें चराएँ ग्वाला चलकर मुस्ताबाद में।

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...


मात करौली से होकर फिर गुफा वैष्णो जाना

भूड़ा पर बैठे बालाजी आकर लड़्डू खाना।

फरिहा हो जाना जसराना और वहाँ से पाढ़म

अपने वंशज जन्मेजय का देखना कुण्ड विहंगम।

सिरसागंज और मटसेना राह तुम्हारी ताकें

नाम तुम्हारे काॅलेज ए के ठीक शिकोहाबाद में।

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...

©️ सुकुमार सुनील

गीत : हाथों की बेरंग लकीरों में रँग भरने वाले हो

 04-09-2023


आप जगत की सब खुशियों के सर्जक बड़े निराले हो

हाथों की बेरंग लकीरों में रँग भरने वाले हो।


होठों पर मुस्कान बाँटने सब पीड़ाएँ पीते 

परहित में ही अधिक स्वयं को थोड़ा-थोड़ा जीते।

पग-पग पर मर्यादाओं की रह  लक्ष्मण रेखा में 

कुम्भकार की भाँति घड़े मिट्टी के गढ़ने वाले हो। 

हाथों की बेरंग लकीरों में...


अँधियारों में राह सुझाते दिव्य दृष्टि के दाता

हर भटकन में बन आ जाते मात-पिता-गुरु-भ्राता।

युग-उपवन को आप बनाते सुमनों का संसार 

जन्म न देते किंतु आप ही जीवन देने वाले हो।

हाथों की बेरंग लकीरों में...


तत् त्वम् पूषण् अपावृणु से चल अमृतम् गमय तक

धरती-अंबर चीर ले गए चंद्रयान तुम त्रय तक।

होते होंगे ईश धरा पर किंतु आप जगदीश

अक्षर-अक्षर दीप बनाकर ज्योति जलाने वाले हो।

हाथों की बेरंग लकीरों में...

©️ सुकुमार सुनील

रविवार, 3 सितंबर 2023

गीत : देखो यह स्वर्णिम भारत है

 कश्मीर की केसर क्यारी की कलिका से विकसित गंध मधुर

लद्दाख-लेह श्वेताभ-शिखर  प्रसरित कर आभा रजत प्रचुर।

हिम-आँचल की छवि छटा प्रवर प्रकृति-पूरित शुभ स्वप्नलोक

पंजाब की धानी चूनर की शक्ति को सकता कौन रोक।


चंडीगढ़ चंड़ी रूप धरे शुचिता से पूरित सरल विमल, यह आर्यभूमि का भाल तिलक

उठकर बैठो आँखें खोलो जागो देखो नव भारत है, देखो यह स्वर्णिम भारत है।


हर्यांगण का बल तेज विपुल दिल्ली का दिल है बहुत बड़ा

कल-कल करतीं गंगा-यमुना देवत्व संजोए देवधरा। 

हों राम कृष्ण या देव बुद्ध अवतरण भूमि उत्तर प्रदेश 

उर पर धारे अपना बिहार नालंदा के शुभ चिह्न शेष।


वक्षस्थल जिसका खनिज लोक अभ्रक का स्वामी झारखण्ड गौरव हैं पारसनाथ यहाँ

है कलाकुंज पश्चिम बंगाल काली की पूजा बेमिसाल, पत्थर में जैसे पारस है।


पीठों पर लादे टोकरियाँ असमी अल्हड नव बालाएँ

बागान चाय के दिखते ज्यों नग की ग्रीवा में मालाएँ। 

अरुणाचल सूरज से करता बातें आँखों में आँख डाल 

मणिपुर भारत के वाम-हस्त शोभे बन मणियों ढली ढाल। 


मेघालय मेघों का निर्झर करुणालय करुणा मूरत का बहती ममता की निर्झरिणी 

मोहनी मिजोरम की छवि है चोटी-चोटी शृंगार सजी दुल्हन सी आभा राजित है।


त्रिपुरा बन त्रिपुर-सुंदरी सा सम्मोहित करता प्राण अहा!

सिक्किम ज्यों बना मुकुट शोभित कंचनजंगा के शीर्ष महा।

हैं विविध भाँति के पशु - पक्षी कूँजित ये नागालैंड भूमि

सातों बहिनें स्वागत करतीं आपस में माथा चूम-चूम।


डटकर लड़ता है जंग स्वयं सागर से रह-रह टकराता यह  राज्य उड़ीसा वक्ष तान

लोहे सा साधे स्वाभिमान 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'

करता चरितार्थ कहाबत है।


है मध्य प्रदेश दलहन नरेश खजुराहो सँग साँची स्तूप

राजस्थानी माटी पावन खेले हैं अगणित यहाँ भूप।

गुजरात की शोभा गाँधी जी कर दिया पटेल ने देश एक

ललकार शिवाजी की गुंजित महाराष्ट्र लड़ाका वीर नेक।


गोवा के बीचों की मस्ती कर्नाटक है तकनीक श्रेष्ठ तेलंगाना की काँस्य कला

आंध्रा में तिरुपति बालाजी हरते हैं सबके ही क्लेश केरल  प्राकृतिक इबारत है। 


चरणारबिंद में तमिलनाडु है धाम पुण्य रामेश्वरम 

जाने कितनी संस्कृतियों का पुडुचेरी है अनुपम संगम। 

इत अंडमान उत लक्षद्वीप वह दमन और वह दीव अहो! 

दादरा औ नगर हवेली की शोभा कितनी है दिव्य कहो! 


माथे पर हिमगिरि मुकुट धरे चरणों को सिंधु पखार रहा लहरों से नज़र उतार रहा

यह है देवों की जन्मभूमि बंशीवट यमुनातट नर्तन 

महावीर है यही तथागत है। 

 ©️सुकुमार सुनील

सोमवार, 21 अगस्त 2023

गीत : जी लो तो जी लो

 बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो

वरना किसको यहाँ पड़ी कि  तुम खा लो पी लो।


बदल रहे हैं युग, युग के सँग युग की तस्वीरें 

बढ़ी मशीनें किन्तु घटी हैं आपस की पीरें। 

कौन कहाँ रखता है चिंता किसकी आपस में 

फटे गूदड़ी अपनी खुद ही सीं लो तो सी लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो... 


पहले ताप किसी को आती सब आ जाते थे

बैठ के ताऊ पड़ोस वाले सिर सहलाते थे।

आज शोक में भी  बैठे हैं रंजिश मान बड़ी

कौन पूछता है पानी की पी लो तो पी लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...


दो हिस्सों में बँटा किंतु फिर कुनबों में टूटा

धीरे-धीरे गाँव बेचारा घर-घर में फूटा।

एकाकी हो गए सभी को बस अपनी चिंता

कंठ कलेऊ कहाँ उतरता ली लो तो ली लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...

©️ सुकुमार सुनील

गीत : गगन से बरस रहा है प्यार

 झमाझम बारिश की रफ़्तार

कि धरती गाए गीत-मल्हार।

लताएँ हिल-मिल करें किलोल

गगन से बरस रहा है प्यार।। 2


सजन आओगे आस नहीं

धैर्य अब बिल्कुल पास नहीं।

राह मेघों ने कीं अवरुद्ध

साँस का छिड़ा साँस से युद्ध।


न कोई और यहाँ अवलम्ब

करूँ बस बूँदों से अभिसार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


ये कदली आम गुलाबी फूल

चिढ़ाए भ्रमर कली पर झूल।

मिलन की लागी ऐसी लगन

पीहु पपिहा की भरती अगन।


अगन जो मन को करती मगन

बनाती यादों को त्योहार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


भरे हैं नदी-नबारे-ताल

ताल जो मन को करे अताल।

न भाती कजरी और न गीत

पुकारे चाह मीत ही मीत।


मीत तुम भूले कैसे प्रीत?

प्रीत की कर दो आ बौछार।

गगन से बरस रहा है प्यार....


चूहती ओसारे से बूँद

देखकर लेती आँखें मूँद।

सालता आँसू का आभास

नयन से तेरे ओ मधुमास!


मास यह बीता जाए खास

बहा दो आकर तुम रसधार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


©️सुकुमार सुनील

गीत : हो सके तो साथ रखना

 रह सकें अक्षुण्य बन मेरे हृदय में

ये सदा संचित, शुभग शुभकामनाएँ

इसलिए मुझसे नहीं आभार होगा

किंतु मेरा मन यही हर बार होगा।

हो सके तो साथ रखना


चाह है सुरभित रहें संबंध सारे

हो कोई भी भूल मुझको माफ करना

वह कुटिल परिपक्वता न है न चाहूँ 

तुम मुझे शिशु ही समझ इंसाफ करना। 

है बहुत संकोच कुछ भी माँगने में 

इस लिए मत सोचना क्या माँग लूँगा? 

यह मेरी उँगली कभी भी छोड़ना मत

बस तुम्हारे साथ को सब मान  लूँगा। 



है कोई भी वस्तु इतनी कीमती कब? 

आपका आशीष ही उपहार होगा।

हो सके तो साथ रखना। 


आपका यह स्नेह पाकर मन मुदित है

विहँसने हैं लग गए रग-रोम सारे

हो गया है स्वर्ग सा परिवेश पूरा

और प्रमुदित हो रहे भू-व्योम- तारे।

तार मन के हो के झंकृत कह रहे हैं

प्यार कितना आह! इस जग में भरा है

मात-पितु-गुरुगण सभी हैं साथ पल-पल

हाथ जबसे आपने सिर पर धरा है।


पा सका कण भर जगह यदि उर-उदधि में 

श्रेष्ठ क्या इससे कोई अभिसार होगा। 

हो सके तो साथ रखना।


स्वर्ग से टूटा हुआ तारा कहो या

तुम किसी शुभ देव का अभिशाप समझो

मनुज से मैं देवता बनने चला हूँ

किस तरह और क्या करोगे? आप समझो।

प्राण का दीपक निरंतर जल रहा है

रोज झंझाएँ इसे झकझोरतीं हैं

स्वास को ही स्वर भजन का ॐ धुन का 

चल दिया करने मगर मन मोड़तीं हैं। 


पार्थ सा मैं दिग्भ्रमित हो सारथी सब

तब उचित उपदेश ही आधार होगा। 

हो सके तो साथ रखना। 


©️ सुकुमार सुनील

गीत: समंदर बह गया होता

तनिक सी इक लहर में यह समंदर बह गया होता
किनारा ताकता ही मुँह क्षितिज का रह गया होता।

कि वह जो मिल गया है आस का पर्याय बन करके
कि वह जो घुल गया है स्वास में मधुमास बन करके।
कि वह जो बनके परछांई हरइक क्षण साथ है मेरे
कि जिसके नयन बनकर दीप पग-पग पंथ हैं घेरे।

कि जिसने संचयित की सहजता की जाह्नवी उर में 
कि उसकी चेतना का ज्वार पल में ढह गया होता।
किनारा...

कि जिसने समर्पण को ही समर्पित कर दिया जीवन
कि जिसने एक कल्पित देवता को दे दिया तन-मन। 
कि जिसने कर लिया है तन कलश मन थाल पूजा का
कि जिसकी अर्चना ही प्रेम है फिर भाव दूजा क्या?

कि जिसने स्नेह को साधा समझकर श्रेष्ठ हर तप से
लगा चिर साधना में लीन सा वह रह गया होता।
किनारा...

कि जो संवेदनाओं के मृदुल मधुपर्क से सिंचित
कि जिसके मौन में है सृष्टि का ठहराव सा किंचित। 
कि वह जो बूँद सा आ मिल गया लवणीय इस जल में 
कि वह जो फूँक देता प्राण मेरे प्राण में पल में। 

कि जिसकी निकटता हर कष्ट को बौना बना देती
कि चिर अलगाव को वह नाम मेरे  कर गया होता। 
किनारा... 
©️ सुकुमार सुनील

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