बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो
वरना किसको यहाँ पड़ी कि तुम खा लो पी लो।
बदल रहे हैं युग, युग के सँग युग की तस्वीरें
बढ़ी मशीनें किन्तु घटी हैं आपस की पीरें।
कौन कहाँ रखता है चिंता किसकी आपस में
फटे गूदड़ी अपनी खुद ही सीं लो तो सी लो।
बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...
पहले ताप किसी को आती सब आ जाते थे
बैठ के ताऊ पड़ोस वाले सिर सहलाते थे।
आज शोक में भी बैठे हैं रंजिश मान बड़ी
कौन पूछता है पानी की पी लो तो पी लो।
बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...
दो हिस्सों में बँटा किंतु फिर कुनबों में टूटा
धीरे-धीरे गाँव बेचारा घर-घर में फूटा।
एकाकी हो गए सभी को बस अपनी चिंता
कंठ कलेऊ कहाँ उतरता ली लो तो ली लो।
बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...
©️ सुकुमार सुनील
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