रह सकें अक्षुण्य बन मेरे हृदय में
ये सदा संचित, शुभग शुभकामनाएँ
इसलिए मुझसे नहीं आभार होगा
किंतु मेरा मन यही हर बार होगा।
हो सके तो साथ रखना
चाह है सुरभित रहें संबंध सारे
हो कोई भी भूल मुझको माफ करना
वह कुटिल परिपक्वता न है न चाहूँ
तुम मुझे शिशु ही समझ इंसाफ करना।
है बहुत संकोच कुछ भी माँगने में
इस लिए मत सोचना क्या माँग लूँगा?
यह मेरी उँगली कभी भी छोड़ना मत
बस तुम्हारे साथ को सब मान लूँगा।
है कोई भी वस्तु इतनी कीमती कब?
आपका आशीष ही उपहार होगा।
हो सके तो साथ रखना।
आपका यह स्नेह पाकर मन मुदित है
विहँसने हैं लग गए रग-रोम सारे
हो गया है स्वर्ग सा परिवेश पूरा
और प्रमुदित हो रहे भू-व्योम- तारे।
तार मन के हो के झंकृत कह रहे हैं
प्यार कितना आह! इस जग में भरा है
मात-पितु-गुरुगण सभी हैं साथ पल-पल
हाथ जबसे आपने सिर पर धरा है।
पा सका कण भर जगह यदि उर-उदधि में
श्रेष्ठ क्या इससे कोई अभिसार होगा।
हो सके तो साथ रखना।
स्वर्ग से टूटा हुआ तारा कहो या
तुम किसी शुभ देव का अभिशाप समझो
मनुज से मैं देवता बनने चला हूँ
किस तरह और क्या करोगे? आप समझो।
प्राण का दीपक निरंतर जल रहा है
रोज झंझाएँ इसे झकझोरतीं हैं
स्वास को ही स्वर भजन का ॐ धुन का
चल दिया करने मगर मन मोड़तीं हैं।
पार्थ सा मैं दिग्भ्रमित हो सारथी सब
तब उचित उपदेश ही आधार होगा।
हो सके तो साथ रखना।
©️ सुकुमार सुनील
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