04-09-2023
आप जगत की सब खुशियों के सर्जक बड़े निराले हो
हाथों की बेरंग लकीरों में रँग भरने वाले हो।
होठों पर मुस्कान बाँटने सब पीड़ाएँ पीते
परहित में ही अधिक स्वयं को थोड़ा-थोड़ा जीते।
पग-पग पर मर्यादाओं की रह लक्ष्मण रेखा में
कुम्भकार की भाँति घड़े मिट्टी के गढ़ने वाले हो।
हाथों की बेरंग लकीरों में...
अँधियारों में राह सुझाते दिव्य दृष्टि के दाता
हर भटकन में बन आ जाते मात-पिता-गुरु-भ्राता।
युग-उपवन को आप बनाते सुमनों का संसार
जन्म न देते किंतु आप ही जीवन देने वाले हो।
हाथों की बेरंग लकीरों में...
तत् त्वम् पूषण् अपावृणु से चल अमृतम् गमय तक
धरती-अंबर चीर ले गए चंद्रयान तुम त्रय तक।
होते होंगे ईश धरा पर किंतु आप जगदीश
अक्षर-अक्षर दीप बनाकर ज्योति जलाने वाले हो।
हाथों की बेरंग लकीरों में...
©️ सुकुमार सुनील
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