शनिवार, 30 नवंबर 2024

गीत : जाने कितना प्यार सखे

 08-10-2024

हँसी-ठिठोली, नोंक-झोंक कुछ, थोड़ी सी तकरार सखे

छिपा व्यर्थ की इन बातों में खुशियों का अम्बार सखे

जाने कितना प्यार सखे - 2


जाने क्या - क्या कह जाता हूँ तुमसे मैं अपनेपन में 

सत्य मानना बैसे कोई पाप नहीं मेरे मन में 

शायद युग का रूप समूचा अभी नहीं पढ़ पाया हूँ 

अतः स्वयं को तदनुरुप मैं अभी नहीं गढ़ पाया हूँ 

कुछ शैतानी कुछ नटखटपन और बाल-मन शेष है

उर में पीर छिपा मुसकाना मेरी प्रकृति विशेष है



क्षमा मुझे करना हो कोई भूल भूलवश मुझसे तो

तुम्हें छेड़कर बजते मेरी मन-वीणा के तार सखे

छिपा व्यर्थ की इन बातों में...


महज तुम्हारा चुप मुझको ये धुँआ-धुँआ कर जाता है 

एक हताशा सी मेरे मन-उपवन में भर जाता है

भर जाता है तन में सिहरन और हृदय में कोलाहल

कैद कोई पंक्षी पिंजड़े में बैठा हो जैसे व्याकुल 

मन को मन दे दो तन का क्या? तन तो है नश्वर

धरो शब्द अधरों पर है शब्दों का अस्तित्व अमर


लौटा मुझको देना पहुँचे शब्दों से आघात तुम्हें 

शब्द तुम्हारे कुरुक्षेत्र में हैं गीता का सार सखे

छिपा व्यर्थ की इन बातों...


तुमसे मिल संकोच मिटा है थोड़ा सा मन का

उलझा-उलझा पथ सुलझा है थोड़ा जीवन का

तुमसे मिलकर सीख सका हूँ कहना मन की बात

तुम चाहो तो कर सकते हो मुझको भी सुकरात

जग जितना आधुनिक हुआ है तुम भी साथ चले 

तुम नवीन्य की नव आँखों में आँखें डाल पले


वहीं आधुनिक और पुरातन की मैं हूँ मृदु-गंध 

साथ तुम्हारा तनिक मिला तो पा लूँ युग से पार सखे

छिपा व्यर्थ की इन बातों... 

©️ सुकुमार सुनील

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