रविवार, 28 सितंबर 2025

भारतीय रेल: परिवहन का सुगम साधन या खेल? — ढोल की पोल खोलता बेबाक ब्लॉग

 भारतीय रेल: परिवहन का सुगम साधन या खेल? — ढोल की पोल खोलता बेबाक ब्लॉग

भारतीय रेल: परिवहन का सुगम साधन या खेल - भीड़भाड़ वाली ट्रेन और रेलवे की समस्याओं पर आधारित थम्बनेल


प्रस्तावना: रेल — जीवनरेखा या सिरदर्द?


भारतीय रेल को हमेशा गरीब और मध्यम वर्ग की जीवनरेखा कहा गया है। यही वह साधन है जो लाखों मजदूरों, छात्रों, कर्मचारियों और यात्रियों को हजारों किलोमीटर दूर तक कम खर्च में पहुंचाता है। लेकिन आज यही रेल सुविधा से ज्यादा संघर्ष का प्रतीक बन गई है।


टिकट बुकिंग व्यवस्था पर नजर डालिए — 120 दिन की जगह 60 दिन का रिज़र्वेशन विंडो, तत्काल टिकट का 90% न मिलना, स्टेशन पर घंटों लंबी कतारें, ऑनलाइन बुकिंग में दलाल और बॉट्स का खेल। सवाल उठता है: क्या भारत में आम नागरिक को समय पर घर पहुँचने का अधिकार नहीं है?



भारतीय रेल से जुड़ीं प्रमुख चिंताएँ


1. बुकिंग विंडो की समस्या


पहले यात्री 120 दिन यानी 4 माह पहले टिकट बुक कर सकते थे, अब इसे घटाकर 60 दिन कर दिया गया है। सवाल है — क्या कोई इंसान 2 या 4 महीने पहले यह तय कर सकता है कि उस समय कौन-सी आपात समस्या सामने आएगी?


2. Tatkal टिकट का छलावा


तत्काल सुविधा का उद्देश्य आपातकालीन यात्रियों को मदद देना था। लेकिन हकीकत यह है कि 90–99% यात्रियों को कन्फर्म टिकट मिल ही नहीं पाता। ऑनलाइन टिकट मिल जाना आज “चमत्कार” जैसा लगता है।


3. स्टेशन पर लंबी कतारें


आज भी बड़े शहरों में यात्री 4–6 घंटे काउंटर पर खड़े रहते हैं। अक्सर लाइन काटकर दलाल टिकट निकाल लेते हैं और असली यात्री खाली हाथ लौटता है।


4. ऑनलाइन बुकिंग की असफलता


IRCTC वेबसाइट और ऐप अक्सर पीक ऑवर्स पर फेल हो जाते हैं। बॉट्स और स्क्रिप्ट चलाकर दलाल टिकट पहले ही छीन लेते हैं। आम आदमी के लिए टिकट मिलना मुश्किल और दलालों के लिए यह सोने की खान।


5. वेटिंग लिस्ट का दर्द


भारतीय रेल की वेटिंग लिस्ट नीति बेहद भ्रमित करने वाली है। कभी-कभी 100वीं वेटिंग तक कन्फर्म हो जाती है और कभी 20वीं तक नहीं। पारदर्शिता का अभाव यात्रियों को परेशान करता है।


6. त्योहार और ब्लैक-मार्केट


त्योहारों व छुट्टियों में ट्रेनों की टिकट पाना असंभव जैसा हो जाता है। दलालों और ऑनलाइन ब्रोकरों के पास “ब्लैक टिकट” मिलती है, जो 2 से 3 गुना दाम पर बेची जाती है। सवाल उठता है: क्या रेल प्रशासन इस धंधे से वाकिफ नहीं है?


7. कर्मचारियों और प्रवासी मजदूरों की समस्या


केंद्रीय या अन्य सरकारी कर्मचारी, जिनकी पोस्टिंग घर से हजारों किलोमीटर दूर होती है, अक्सर परिवार में समस्या आने पर फँस जाते हैं। टिकट न मिलने से वे चाहकर भी घर नहीं पहुँच पाते। यही हाल प्रवासी मजदूरों और छात्रों का है।



क्यों बिगड़ा सिस्टम?


क्षमता की कमी: मांग बहुत बढ़ी, लेकिन रेलगाड़ियों और कोचों की संख्या उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ाई गई।


नीतिगत उलझन: बार-बार नियम बदलना और यात्रियों से राय न लेना।


तकनीकी खामियाँ: IRCTC की वेबसाइट और ऐप का बार-बार डाउन होना।


दलालों का नेटवर्क: टिकट दलाली और ब्लैक मार्केटिंग पर ढीली पकड़।


पारदर्शिता का अभाव: वेटिंग लिस्ट और कोटा की जानकारी आम यात्री तक साफ़-साफ़ नहीं पहुँचती।



सुधार की ज़रूरत और संभावनाएँ


1. इमरजेंसी और कर्मचारी कोटा


हर ट्रेन में 2–4 बर्थ “आपातकालीन कोटा” के नाम से सुरक्षित हों, जिनका उपयोग केवल दूरस्थ तैनात कर्मचारी या गंभीर स्थिति में फँसे यात्रियों द्वारा किया जा सके।


2. हाइब्रिड बुकिंग विंडो


सामान्य टिकट: 60 दिन पहले तक।


अग्रिम योजना वाले यात्री: सीमित सीटें 120 दिन पहले तक उपलब्ध।



3. Tatkal 2.0


बॉट रोकने के लिए सख्त टेक्नोलॉजी।


सत्यापन आधारित प्राथमिकता (जैसे OTP + आधार)।


एक ID से तय संख्या से अधिक टिकट न बुक हो सके।



4. डिजिटल प्लेटफॉर्म सुधार


IRCTC सर्वर अपग्रेड और तेज़ मोबाइल-फ्रेंडली ऐप।


रीयल-टाइम विकल्प: “इस ट्रेन में जगह नहीं, पर दूसरी ट्रेन में सीट है।”



5. काउंटर पर सुधार


त्योहारों में अतिरिक्त काउंटर।


प्राथमिकता काउंटर वरिष्ठ नागरिक और आपातकालीन यात्रियों के लिए।



6. पारदर्शिता


वेटिंग लिस्ट कन्वर्ज़न और Tatkal success प्रतिशत सार्वजनिक किया जाए।


मासिक रिपोर्ट: सर्वर uptime, दलालों पर कार्रवाई, औसत प्रतीक्षा समय।



7. दलालों पर सख्ती


दलाली पकड़े जाने पर ID ब्लॉक, भारी जुर्माना।


स्टेशन पर CCTV मॉनिटरिंग और रीयल-टाइम जांच।



8. डिमांड-रेस्पॉन्सिव ट्रेनें


त्योहार/प्रवासन सीज़न में तुरंत अतिरिक्त ट्रेनें चलाई जाएँ।


डेटा एनालिटिक्स से मांग का पूर्वानुमान कर रेक जोड़ें।



निष्कर्ष: क्या भारतीय रेल अपना दायित्व निभा रही है?


भारतीय रेल हर दिन लाखों लोगों को सफ़र कराती है, लेकिन जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है तब यही रेल निष्क्रिय और कठोर सिस्टम में बदल जाती है।


एक कर्मचारी अगर अपने बीमार माता-पिता के पास न पहुँच पाए, एक प्रवासी मजदूर अगर त्यौहार पर अपने बच्चों के साथ न रह पाए, एक छात्र अगर अचानक यात्रा न कर पाए — तो यह सिर्फ़ उनकी असफलता नहीं, बल्कि रेलवे प्रशासन की नाकामी है।


सुधार संभव हैं — तकनीकी, नीतिगत और सामाजिक। ज़रूरत केवल इच्छाशक्ति की है।


Disclaimer (अस्वीकरण)


यह लेख लेखक के व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य भारतीय रेल की समस्याओं और सुधार की संभावनाओं पर ध्यान दिलाना है। किसी संस्था या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना लेखक का उद्देश्य नहीं है।


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