शनिवार, 30 नवंबर 2024

गीत - सोच रहा हूँ तब से पल-पल चिर अनुरागी हूँ

 25-10-2024


सोच रहा हूँ तब से पल-पल चिर अनुरागी हूँ 


पग-पग पर संघर्ष सतत हैं

कितने ही दुर्भाग्य साथ हैं। 

कितने स्वप्न ढए आँखों के

खाली कितनी बार हाथ हैं। 

बनकर अश्रु झरे हैं कितने

वे मन के संकल्प सयाने। 

जाने कितने घात मिले हैं 

कदम-कदम जाने-अनजाने। 


एक विरस पतझर था जीवन 

तुम आए बन मलय पवन। 

पलभर साथ तुम्हारा पाकर

मैं बड़भागी हूँ। 

सोच रहा हूँ तब से पल-पल

चिर अनुरागी हूँ


जाने कितने पथ भटके हैं

जाने कितने साहस हारे। 

कितनीं मंजिल पावों तक आ

जाने कब कर गईं किनारे। 

जाने कितने सावन देकर 

आश्वासन के मेघ न बरसे। 

जाने कितने फागुन अपने 

आस लिए रंगों की तरसे। 


एक साथ सावन-फागुन सा

सखे! तुम्हारा मधुर आगमन।

तुमसे मिल आभास हुआ

मैं भी रति-भागी हूँ। 

सोच रहा हूँ तब से पल-पल

चिर अनुरागी हूँ


सारे ही वैफल्य फलित बन

सुंदर सुफल दे रहे हैं। 

सब वैकल्य सभी चिंताएँ

हर, हर शोक ले रहे हैं।

तुम्हें ज्ञात हो याकि नहीं हो

मेरा भूला भाग्य बना। 

त्रुटि सुधारकर भेज दिया है 

विधि ने मुझको तुम्हें रचा। 


भीनी-भीनी नेह-गंध से 

महक उठा मेरा उर-आँगन। 

प्रेम-परीक्षा का शायद 

अंतिम प्रतिभागी हूँ। 

सोच रहा हूँ तब से पल-पल

चिर अनुरागी हूँ 


©️ सुकुमार सुनील

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