25-10-2024
आस प्रेम है भास प्रेम है
स्वास और प्रस्वास प्रेम है।
सच कहता हूँ मध्य हमारे
यह अपना विश्वास प्रेम है।।
अक्सर बातें कम हो पाना
मिलकर आँखें नम हो जाना।
शुचि सुधियों के चंदन-वन में
स्वासों का सरगम हो जाना।
बैठे-बैठे बुत होने का
वह स्वप्निल स्वाभास प्रेम है ।
आस प्रेम है भास प्रेम है..
नत हो जाते देख नयन हैं
अधरों पर केवल कंपन हैं।
मौन-मौन ही बतियाते हम
मिलकर दोनों अंतर्मन हैं।
सब मन की मन में रह जाना
यह अपना संत्रास प्रेम है ।
आस प्रेम है भास प्रेम है...
मेले वे हम कब भूले हैं
ऊँचे वे अब तक झूले हैं।
भींच बाँह में इक-दूजे को
हमने जो सँग-सँग झूले हैं।
वह मस्ती वह बेपरवाही
हास और परिहास प्रेम है।
आस प्रेम है भास प्रेम है...
वह मंदिर में दीप जलाना
माता को चूनर पहनाना।
हर मन्नत में इक-दूजे की
मनोकामना को मनवाना।
सारे व्रत सारी पूजाएँ
वह हरइक उपवास प्रेम है।
आस प्रेम है भास प्रेम है...
©️ सुकुमार सुनील
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