14-09-2024
काँधे से वह बोरी वाला झोला रूठ गया..
खड़िया पट्टी मैले पाँव
वृद्ध हुई पीपल की छाँव
सरकंडे का विद्यालय से
नाता टूट गया
काँधे से वह बोरी वाला झोला रूठ गया।
हर अभाव में जीवित भाव
सरल हृदय पर खरा स्वभाव
बढ़ी सभ्यता आगे
जीवन पीछे छूट गया
अपनेपन को जाने कौन लुटेरा लूट गया।
शहर मूँछ पर देता ताव
और गाँव के उखड़े पाँव
हाय! मुकद्दर संवेदन का
बेबस फूट गया
कंक्रीट का वन खेतों को धम-धम कूट गया।
सुबक-सुबक रोता अलाव
झूम-नाच-गाता अलगाव
विश्वविद्यालय कृषि कर्मों का
रह बस ठूँठ गया
दुखी बहुत चौपाल हौसला टूट अटूट गया।
©️ सुकुमार सुनील
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