मनुज सब भाग्य टटोलें
ईश भी जय जय बोलें।
तू जैसे मधुरिम एक फुहार
तू जैसे सावन की बौछार।
प्रपातों की तू ही कलकल
तू ही गिरि से गिरती रसधार।।
स्वास की वीणा की तू तार
तार में सरगम घोलें।
तू जैसे बागों में तितली
तू जैसे अंबर में बदली।
तू जैसे नदिया में पानी
तू जैसे आँखों में पुतली।।
नेह की तू ही अविरल धार
धार या गंगा बोलें।
तू ही तो जीवन का आधार
तुझी से सृष्टि और संसार।
तेरी रुनझुन से रुनझुन द्वार
भाव तू ही भावों में प्यार।।
सिंधु-जग तू ही तो पतवार
पार हम भव से हो लें।
तू ही तो है जीवन का गान
तुझी से मान और सनमान।
सृष्टि में अनुपम दिव्य विशेष
तू ही तो विधि का परम विधान।।
खुशी का तू ही तो अंबार
तुझी में खुद को खो लें।
©️ सुकुमार सुनील
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