29-08-2024
हर दुविधा से हाथ हमारे धोकर बैठे हैं
सचमुच हम तो मीत तुम्हारे होकर बैठे हैं।
ग्रंथ न जाने कितने पलटे पढ़ बस ढाई आँखर पाए
सारे गीत सभी छंदों की तह में ढाई आँखर पाए।
कहाँ यत्न से ये आते हैं सरल बहुत होकर भी तो
हम इनको पाने में सबकुछ खोकर बैठे हैं।
सचमुच हम तो...
भूले अपना और पराया जब से प्रेम पंथ अपनाया
सब में मूरत एक समाई सब में एक रुपहली छाया
तुलसी चौरे में उग आया पौधा रूप तुम्हारा ले
उर-आँगन में बीज तुम्हारा बोकर बैठे हैं।
सचमुच हम तो...
सारी बाधाएँ आई हैं हिस्से अपने शुभे सुनो!
हर असमंजस रहा चिढ़ाता भ्रमित पंथ हर किसे चुनो
चल-चल राह बनाने वाले राह कहाँ से भटकेंगे अब
खाए जीवन में पग-पग पर ठोकर बैठे हैं।
सचमुच हम तो...
©️ सुकुमार सुनील
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