गुरुवार, 21 नवंबर 2024

गीत : इसीलिये मैं जल्दी-जल्दी गाँव नहीं जाता

 17-09-2023

धुँधला कहीं न हो जाए वह मन का मनहर चित्र

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी गाँव नहीं जाता।


छोटे-छोटे वे थोड़े घर और फूँस के छप्पर

लिपे हुए आँगन गोबर के, मृदा-पात्र, वे खप्पर।

पुते हुए पोता के घर और रंग-बिरंगे चौके

ओटे की दीवारों पर वे बने चित्र मोरों के।

जिसने जोड़ रखा था सबको सोंधी सी सौरभ से

उस पोता-पियरा मिट्टी का ठाँव नहीं पाता।

इसलिए मैं जल्दी-जल्दी...


नवदुर्गा में बना नौत्तिया खेलें बहिन-बुआ सब

प्रातः तीन बजे उठने का चलन समाप्त हुआ अब।

अहा! कहकहे लाँगुरिया के, देवी के भजनों के 

टोल नहीं अब वे सखियों के, दल वे भक्तजनों के।

क्वार-कनागत चंदा-तारे कहाँ   बनें गोबर से

पुरखों के चिह्नों पर लगता दाँव नहीं भाता।

इसलिए मैं जल्दी-जल्दी...


कौन करे मजदूरी आपस में करते थे साझा

सभी स्वाद थे मठ्ठे में ही क्या कोला क्या माज़ा? 

सुबह-शाम काटें सब फसलें मिलकर भाई-भाई

दुपहरिया में बैठ पेड़ के नीचे करें गुनाई।

कृषिकार्यों की पूर्ण पढाई आपस में करने को

आज बैठने कोई बरगद छाँव नहीं आता।

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी...


ताऊ 'लम्बरदार' औरं खुशदिल बाबा 'मुछियारे'

रसमय करें माहौल प्रधान जी 'रामगुपाल' हमारे।

पूछ पहेली चुप कर देते सबको 'टेलर' भैया

अहा! 'विरन' की ढोलक बज गाती थी ता-ता-थैया।

'बंगाली' ताऊ और 'कारे' खेलें मिल बागौर

आज ठहाका चेहरों पर सुर्खाव नहीं लाता।

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी...


हुए मलिन बंबा और पटरीं सिमटी-सिमटी पोखर

गुमसुम-गुमसुम पाट कुँओं के चहल-पहल खो-खोकर।

कहने को तो आ पहुँचा है गाँव खेत के पास

लेकिन घर-घर में छिप बैठा है ग्रामत्व उदास।

कंकरीट के गली-घरों में रिश्ते  नाज़ुक हैं

मुँडेरों पर करने कौआ काँव नहीं आता।

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी...


'अब्बा' के घर के सन्मुख वह झलक राम लीला की

आब-ओ-हवा गाँव की कितनी शुभ थी शुचि-शीला थी।

खेत-खेत में ईख, बैल कोल्हू खींचें  वे मंद

और हौज से उठती वह ताज़े गुड़ की मृदु-गंध।

मटर-कूँकुरा-होरा-गाजर-भुने हुए आलू

सुन होली की गूँज धरा पर पाँव न था आता

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी...


किसी एक के दुःख में होता पूरा गाँव खड़ा

जन-जन के अंतस में बसता था सद्भाव बड़ा।

छोर-छोर से आकर सब मिल बुर्जी छाते थे

फुल्के और दाल की दावत हँस-हँस खाते थे।

छोड़ो हर्षोल्लास शोक में सकुचाते हैं आज

पर-पीड़ा में पीड़ा वाला भाव नहीं आता। 

इसीलिए मैं जल्दी-जल्दी... 

©️ सुकुमार सुनील

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