जब से शबाब में तुम हो
ख्वाब-ख्वाब में तुम हो।
पढता हूँ जो भी पोथी
हरेक किताब में तुम हो।
रखूँ कैसे दबाके पन्नों में
गुलाब, गुलाब में तुम हो।
तुमसे रात तुम्हीं से सबेरा
चाँद-ओ आफ़ताब में तुम हो।
न जल न बुझ ही रहा हूँ
आग में आब में तुम हो।
©️ सुकुमार सुनील
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