शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

ग़ज़ल (ख्वाब ख्वाब में तुम हो)

 जब से शबाब में तुम हो

ख्वाब-ख्वाब में तुम हो।

पढता हूँ जो भी पोथी

हरेक किताब में तुम हो।

रखूँ कैसे दबाके पन्नों में

गुलाब, गुलाब में तुम हो।

तुमसे रात तुम्हीं से सबेरा

चाँद-ओ आफ़ताब में तुम हो।

न जल न बुझ ही रहा हूँ

आग में आब में तुम हो।

©️ सुकुमार सुनील 

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