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*सजल*
समांत- ओए
पदांत - हैं
मात्राभार- 16
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मरुथल में सपने बोए हैं
आँखों ने आँसू खोए हैं
तुम तुहिन बिंदु मत कह देना
जाने कितने मन रोए हैं
चहुँदिशि अंगारे दहक रहे
हम आँख मूँदकर सोए हैं
है नीर विपुल इस सागर में
पग पर नदियों ने धोए हैं
गर्वित हर नग निज तुंग भाल
सब भार धरा ने ढोए हैं
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©️सुकुमार सुनील
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