विषय - संस्कृति
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*सजल*
समांत- अन
पदांत - होता है
मात्राभार- 32
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स्मरण मात्र से ही सुरभित यह तन-मन सावन होता है
प्रत्येक कष्ट का माधव के चरणों में* समापन होता है
कण-कण में शक्ति समाहित है यह भूमि परम अवतारों की
हमने ही* सत्य-शोध समझा यह सत्य सनातन होता है
संस्कृतियों की है मूल-स्रोत वसुधा भारत की देवमयी
हम गरलकंठ के अनुगामी उर-उर अपनापन होता है
इत पत्र-पत्र पर वेद-ऋचाएँ पढ़ो ध्यान से सर्जित हैं
शुचि पुष्प-पुष्प पर उपनिषदों का नित आराधन होता है
तृण-तृण हो प्रेम-पगा रज पा आनंद स्वयं आनंदित हो
वह दिव्य धरा का सरस खण्ड तब जा वृंदावन होता है
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©️ सुकुमार सुनील
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