*उजाले मिले....*
स्याह निकले जो कहकर उजाले मिले
तेज़ छुरियों से भी भोले-भाले मिले।
देखकर हम निशां जिनके चलते गए
पैर वो दूसरों के हवाले मिले।
देके हमको गये वो जहाँ का पता
उन घरों पर पड़े सिर्फ ताले मिले।
दे रहे थे हमें राह फूलों भरी
चल पड़े तो नदी और नाले मिले।
दर-बदर जन्म भर हम भटकते रहे
तब कहीं पेट को दो निबाले मिले।
उनको बैठे बिठाये गगन मिल गया
चलने वालों को पैरों में छाले मिले।
जान खेतों में 'सुकुमार' लेकर खड़े
भूख से पस्त वे गाँव वाले मिले।
©️सुकुमार सुनील
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