एक हवा के झोंके जैसा ये पागल आवारा मन
कली-कली और फूल-फूल पर फिरता मारा-मारा मन
गाँव-शहर पर्वत-नदिया नभ धूप-छाँव हर एक परिस्थिति
जाने कितना भटका है और भटकेगा बंजारा मन
साँसों का सौदागर बेचे जीवन नये-नये रंग के
गली-गली आवाज लगाता लौट-लौट दोबारा मन
सारे लोक घूम आता है पलभर में ये द्रुतगामी
दौड़ रहा बिन-पग बिन-पथ ही है विचित्र हरकारा मन
©️सुकुमार सुनील
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