ज़लज़ला बनके कहर ढाएगा
वो जो बन-ठन के अगर आएगा।
अश्क उस आँख से ढलका जो अगर
पानी, पानी का उतर जाएगा।
आस का दीप जो जला रख्खा है
रोशनी ज़िस्म में भर जाएगा ।
अब न रफ़्तार हवाओं में वो है
ये भी तूफ़ान गुज़र जाएगा।
ये इधर तो वो उधर इस क़दर
ना जाने कौन किधर जाएगा।
रात कितनी वो सुहानी होगी
चाँद को चाँद नज़र आएगा।
वक्त हसरत को न समझ पाया गर
दिल-ए 'सुकुमार' विखर जाएगा ।
©️सुकुमार सुनील
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