पदांत - इत्र
समांत- मिले हैं
मात्राभार - 24
सपनों में कुछ सुहावने से चित्र मिले हैं
फूलों-से खिलखिलाते हुए मित्र मिले हैं।
बातों में हों उनकी पड़े शहद के छींटे
आचरण में उनके जैसे इत्र मिले हैं।
उतार कर देखी समय के गर्त की परत
स्थान सारे देश के पवित्र मिले हैं
कहानियाँ सुनी-पढ़ीं हैं प्रेमचंद कीं
विविध रंग-ढंग के चरित्र मिले हैं।
धनवंत को मनमानियाँ निर्धन को विवशता
प्रबंध सदा राष्ट्र के विचित्र मिले हैं।
शत्रु ही हैं देश के नेतृत्व में सभी
'सुकुमार' समझते हो कि सौमित्र मिले हैं।।
©️ सुकुमार सुनील
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