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*हिन्दी की सशक्त और स्वाभिमानी बेटी : सजल*
समृद्ध शब्दकोश, समृद्ध साहित्य व विशद-हृदया भाषा हिंदी ने जहाँ विश्व की अनन्य भाषाओं को अपने आँचल की छाया देकर अपनाने का काम किया तो वहीं उन अन्य भाषाओं ने हिन्दी को इतना निर्बल समझा कि उन्होंने हिन्दी को, हिन्दी से परेय हिंदुस्तानी और हिंग्लिश बनाने का भरपूर प्रयास किया। दुर्भाग्य की बात यह है कि स्वयं को हिन्दी के पुत्र कहने वाले असंख्य साहित्यकार, यह सब आँख मूंदकर सहते रहे। तो वहीं हिन्दी की उदार हृदया विधाएँ भी, इस विद्रूपता को सहज स्वीकारतीं रहीं। देखदे ही देखते इन मिश्र भाषाओं ने अपना एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया। अब तक विशुद्ध हिन्दी की वकालत करने वाले चंद साहित्यकार भी थक-हार कर या यों कहें, उन मिश्रित भाषाओं से प्रेरित होकर उसी धारा में बहने लगे।......
परन्तु आज हिन्दी के सुरम्य आँचल में पले-बढ़े, हिन्दी के सच्चे सपूतों के प्रणम्य प्रयासों से हिंदी पुनः अपने स्वाभिमान, अपनी समृद्धि के अनंत आकाश को स्पर्श करने के लिए तत्पर ही नहीं, अपितु उसमें विचरण करती हुई दृष्टिगोचर हो रही है।....
हिंदी की विशुद्ध विधा रुपी बेटियों के मध्य जन्मी *सजल* विधा, हिंदी की एक ऐसी बेटी है, जिसे अपनी माँ की मान-मर्यादा और स्वाभिमान का सम्पूर्ण रूप से ध्यान है। वह विशुद्ध हिन्दी भाषा के शब्द, ढंग/शैली, छंद और व्याकरण के अनुपालन का अक्षरशः ध्यान रखती है।
साथ ही *सजल* रूप, लावण्य और आकर्षण से युक्त एक ऐसी अनिद्य सुंदरी है जिसे देखते/सुनते/पढते ही लेखक और पाठक दोनों को अतीव आनंद की प्रतीति होती है। अतः रचनाकार रचनाधर्म में तो पाठक रसास्वादन में रत हो जाता है।
अंत में सजल निःसंदेह हिन्दी की गौरवशाली विधा है। जो न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रही है, अपितु उसकी विशुद्धता, विशदता और व्यापकता को भी प्रमाणित कर रही है।
जय हिंदी 🙏
जय सजल 🙏
- सुकुमार सुनील
फिरोजाबाद, उ. प्र.
भारत
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