*सजल*
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समांत. - आल
पदांत. - हुई है
मात्रा-भार- 32
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सूनसान-सन्नाटों वाली रात घुप्प विकराल हुई है
चारों-ओर विवशताएँ हैं नीरस मन की ताल हुई है
पल-पल चीख-पुकार-पगा है सतत रक्त-रंजित वसुधा-उर
नीति, शक्ति के पाँव पलोटे न्याय संग विधि ढाल हुई है
कागों ने मोती पाए हैं हंस विवश उपवास साधने
करुणा शोक-विकल अति आकुल कटुता मालामाल हुई है
देखो प्रेम-गाँव में आकर सब कुछ अस्त-व्यस्त ऊजड़ है
शुष्क मूल है विटप-विटप की पुष्पित कैसी डाल हुई है
चलो चलें झोलियाँ सँभालें खेतों में मोती विखरे हैं
समय-चुनावी, नेह-नीर की वर्षा बहुत विशाल हुई है
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©️ सुकुमार सुनील
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