आज़ संसद में कि जैसे आँख पानी माँगती है
सारे उत्तर वह कि जैसे मुँह ज़ुबानी माँगती है।
बैठ बंदर-बाँट करते सरहदों को भूलकर तुम
छिन गया सिंदूर जो सिंदूरदानी माँगती है।।
स्वार्थरत मज़मे में सारे ये मदारी और कलंदर
रक्त-रंजित माँ सपोलो पानी-पानी माँगती है।
लूटकर पतझर बनाया है जो तुमने चमन सारा
ठू़ँठ पर बैठी ज्यों कोयल ऋतु सुहानी माँगती है।
आपसी सद्भाव सारा चर गये जो नर-पशु ये
प्यार की बंज़र ज़मी ये रूप धानी मा़गती है।
नीम वाली छाँव में चौपाल वह "सुकुमार" फिर से
तोता-मैना राजा-रानी की कहानी माँगती है।।
©️सुकुमार सुनील
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