स्वार्थ के पथ पर चरण निज धर रहे हैं हम सभी
सत्य है यह सत्य से नित डर रहे हैं हम सभी।
स्वयं ही हैं लक्ष्य तो निज हाथ में बंदूक है
मारने उनको चले हैं मर रहे हैं हम सभी।
तन तो उज्ज्वल हो गए उर-भावना दूषित रही
व्यर्थ का शृंगार यह जो कर रहे हैं हम सभी।
यह समय का युद्ध है प्रिय जीतना दुर्लभ बहुत
एक ही तो घाट पानी भर रहे हैं हम सभी।
ठहर कर मन-पथिक को किंचित सही विश्रांति दो
जब से चले हैं सतत ही विचर रहे हैं हम सभी।
कर उपेक्षा ब्रह्म-रस की प्यास लेकर रक्त की
शुष्क पीले-पल्लवों से झर रहे हैं हम सभी।
आँख में पानी बहुत है किंतु अपनों के लिए
बूँद बन सुकुमार दो-एक ढर रहे हैं हम सभी।
©️ सुकुमार सुनील
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर
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