बुधवार, 9 नवंबर 2022

छंद (कविता)

 कविता के आँगन में अक्षरों के लेके पुष्प

शब्द के जलाए दीप लाया स्वीकारिए।

भाव नहीं भाषा नहीं और कोई आशा नहीं

कामना को मेरी निज चरणों में धारिए।

सुना है गुना है तब आपको चुना है शुचि

मेरी क्षीण साधना को आप ही सँवारिए।

लिख सकूँ भूख और पीड़ा के सलौने गीत

काव्य-सरिता को मात मुझमें उतारिए।।

©️सुकुमार सुनील 

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Bht khoob

बेनामी ने कहा…

Speechless

बेनामी ने कहा…

Bahut Khoob

बेनामी ने कहा…

अति सुंदर

मोहन यादव ने कहा…

बहुत खूब

Sukumar Sunil ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद 🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद 🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद 🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद 🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद 🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

आप सभी अपनों का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर छंद

Sukumar Sunil ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏

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