यद्यपि अक्षम नहीं आँग्ल-भाषा बोलने में
किंतु मातृभाषा निज हिंदी मन भाती है।
व्याकरण शैली सब सीखे अँगरेजी के भी
भाव को सहेज पर हिंदी रखपाती है।
द्वेष तो नहीं है मीत भाषा किसी से भी पर
रसना को रसभीनी हिंदी ही सुहाती है।
सेवा का विधान कुछ जानता नहीं हूँ और,
बोलने में हिंदी बस शर्म नहीं आती है।।
©️ सुकुमार सुनील
16 टिप्पणियां:
Ek number bhai ji
Bht khoob
सही बात
Very true n effective lines about hindi
Bahut sundar bhaiya
Super
एकदम टना टन भाई जी.....!🙏🙏
Lovely
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏 😊
आप सभी का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार 🙏😊
बेहतरीन रचना।
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार 🙏🙏🙏
आप सभी अपनों का पुनि-पुनि आभार 🙏
Bahut Sundar Sir ji
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏 😊
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