गुरुवार, 10 नवंबर 2022

छंद (हिंदी)

 यद्यपि अक्षम नहीं आँग्ल-भाषा बोलने में

किंतु मातृभाषा निज हिंदी मन भाती है।

व्याकरण शैली सब सीखे अँगरेजी के भी

भाव को सहेज पर हिंदी रखपाती है।

द्वेष तो नहीं है मीत भाषा किसी से भी पर

रसना को रसभीनी हिंदी ही सुहाती है।

सेवा का विधान कुछ जानता नहीं हूँ और, 

बोलने में हिंदी बस शर्म नहीं आती है।।

©️ सुकुमार सुनील 

16 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

Ek number bhai ji

बेनामी ने कहा…

Bht khoob

अनिता ने कहा…

सही बात

Anita ने कहा…

Very true n effective lines about hindi

बेनामी ने कहा…

Bahut sundar bhaiya

बेनामी ने कहा…

Super

बेनामी ने कहा…

एकदम टना टन भाई जी.....!🙏🙏

बेनामी ने कहा…

Lovely

Sukumar Sunil ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏 😊

Sukumar Sunil ने कहा…

आप सभी का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार 🙏😊

Unknown ने कहा…

बेहतरीन रचना।

Sukumar Sunil ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार 🙏🙏🙏

Sukumar Sunil ने कहा…

आप सभी अपनों का पुनि-पुनि आभार 🙏

बेनामी ने कहा…

Bahut Sundar Sir ji

Sukumar Sunil ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏 😊

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