कविता के आँगन में अक्षरों के लेके पुष्प
शब्द के जलाए दीप लाया स्वीकारिए।
भाव नहीं भाषा नहीं और कोई आशा नहीं
कामना को मेरी निज चरणों में धारिए।
सुना है गुना है तब आपको चुना है शुचि
मेरी क्षीण साधना को आप ही सँवारिए।
लिख सकूँ भूख और पीड़ा के सलौने गीत
काव्य-सरिता को मात मुझमें उतारिए।।
©️सुकुमार सुनील
13 टिप्पणियां:
Bht khoob
Speechless
Bahut Khoob
अति सुंदर
बहुत खूब
हार्दिक धन्यवाद 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏
हार्दिक धन्यवाद 🙏
आप सभी अपनों का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏
बहुत सुंदर छंद
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏
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