मेरे गाँव गली घर-घर में वही पुराना प्यार बहे फिर।
मौन हुए बतियाते आँगन चहल-पहल करती चौपालें
गलियों ने सन्नाटे साधे पगडंडीं काँधे से डालें।
द्वार-द्वार के होठ सिले हैं ड्योढी-ड्योढी में अनबन है
छप्पर और छत्त में झगड़ा क्रंदन हर टटिया के मन है।
बहुत हुआ ओ पीपल! ओ वट! तुम ही थोड़ा बदलो करवट
हिला-डुलाओ अपने पत्ते सीरी-सीरी ब्यार बहे फिर।
साँस-साँस गीली-गीली है चाल-चाल ढीली-ढीली है
आँख आँख में लालामी है हर सूरत पीली-पीली है।
हथियारों से बँधे मुकद्दर कब तक क्रांति बीज बोयेंगे
नवजातों के स्वप्न सलोने कब तक छुप-छुप कर रोएँगे।
क्रोध तुम्ही कुछ ग़म खा जाओ, उनमादों को बस में लाओ
संबंधों की सूनी रग-रग में सुरभित रसधार बहे फिर।
खेतों में शत्रुता उगी है मेंड़, मेंड़ पर आँख तरेरे
सबका अपनापन खोया है लोग हुए हैं तेरे-मेरे
पनघट ने चुप्पियाँ साधलीं घूँघट के पट आग उगलते
अनगिन प्रश्न खड़े हैं सन्मुख मन में ठाड़े बैठे चलते।
खुद से ऊँचे अहम् हुए हैं क्षमा तुम्हें ही जगना होगा
सुखमय स्वप्निल सृजन पंथ को यह विखरा संसार गहे फिर।
©️सुकुमार सुनील
2 टिप्पणियां:
Bahut sundar
हार्दिक आभार उत्साहवर्धन करते रहिए 🙏
एक टिप्पणी भेजें