शनिवार, 30 सितंबर 2023

गीत : हिन्दी राजदुलारी है

 विविध बोलियाँ और भाषाएँ सबमें न्यारी प्यारी है

सहज सरल सुंदर सम्मोहक हिन्दी राजदुलारी है।


ब्रजभाषा हरियाणी बोलो या तुम राजस्थानी

अबधी बुंदेली कन्नौजी या परियों की बानी। 

यही पहाड़ों के अधरों पर कल-कल स्वर धरती है

मैथिलि मगही भोजपुरी के मन में मधु भरती है। 

मीत बघेली छत्तीसगढ़िया और खड़ी बोली यह

यही राम का रूप मनोहर ये कान्हा किलकारी है। 

सहज सरल सुंदर सम्मोहक हिन्दी राजदुलारी है...


कश्मीरी सुषमा में घुल-मिल कश्मीरी हो जाती 

यह दिल्ली के दिल में बसकर   नया रुप दिखलाती ।

सजती और सँवरती है यह मैदानी भू-भाग में

और निखरती जाती जैसे तपता कुंदन आग में। 

भारत के माथे की बिंदी बाॅलीवुड की जान

सपनों के भारत की स्वर्णिम स्वप्निल राजकुमारी है। 

सहज सरल सुंदर सम्मोहक हिन्दी राजदुलारी है...


द्वेष भले कोई करता हो समझ सभी को आती है

नाम दक्किनी धर दक्षिण में निज परचम लहराती है।

पूर्वोत्तर क्या सिंहापुर से माॅरीशस तक फैली है

देखो मन से हिंदी माँ की चूनर बहुत रुपहली है। 

सारे जग में आज हमें हिन्दी भाषी मिल जाते हैं 

माँ की ममता सी सुरभित छाया अनुपम गुणकारी है। 

सहज सरल सुंदर सम्मोहक हिन्दी राजदुलारी है... 

©️ सुकुमार सुनील

गीत : आओ कृष्ण मुरारी

 घुप्प अँधेरे में बैठे हैं पिता और महतारी

करे प्रतीक्षा कंस तुम्हारी आओ कृष्णमुरारी।


हाथों में हथकड़ी बेड़ियाँ पावों को जकड़े हैं 

साँस-साँस पहरुए क्रुद्ध हो घूरें और अकड़े हैं। 

गरज रहे हैं अहंकार के बादल बड़बोले वे

उगल रहीं हैं आग बिजलियाँ अपना मुँह खोले वे।

खड़े हुए हैं हतप्रभ सारे ब्रजवासी भय-आतुर

सुनो प्रार्थना आप पधारो ले बंशी बनवारी।

करे प्रतीक्षा कंस तुम्हारी....


सबके मुँह पर पड़े हुए हैं, हाँ नृप-भय के ताले

जो बोलेगा उसे पड़ेंगे निज प्राणों के पाले।

वह अनीति का और नीति का अंतर भूल गया है

नियति भूलकर सही-गलत के भ्रम पर झूल गया है।

बढ़ता पापाचार टिकीं हैं आँखें सबकी तुम पर

तोड़ के फाटक अब कारा के आजाओ त्रिपुरारी।

करे प्रतीक्षा कंस तुम्हारी....


गहराती है घटा और हहराती है कालिंदी

मन-मलीन बसुदेव, देवकी की धूमिल है बिंदी।

त्राहि-त्राहि चिल्लाए जन-जन  तन-मन सब व्याकुल हैं

नंदगाँव-गोकुल के सब, पशु-पक्षी शोकाकुल हैं ।

आशा की बस आप किरण हो तम को दूर भगाने

आओ मोरपंख सिर धरकर चक्र सुदर्शनधारी ।

करे प्रतीक्षा कंस तुम्हारी...


तुम आओगे ब्रजमंडल में खुशियाँ छा जाएँगीं

दानवीय प्रवृत्ति समूचीं ठाड़ी सकुचाएँगी।

अघा वका शकटासुर सारे और पूतना नारी

रहें न ये घर-घर महकेगी सुख की ही फुलवारी। 

भेद बताने मीत वासना और प्रेम के बीच

हर आतप से रक्षा करने आओ प्रिय गिरिधारी। 

करे प्रतीक्षा कंस तुम्हारी.... 

©️ सुकुमार सुनील

गीत : आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में

 विलख रहा मन-मख्खन तेरी याद में

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में।


सुनकर आहट जन्मदिवस की मन फूला न समाए

फूल टूण्डला की स्टेशन हर कोई हो जाए। 

हाथी घोड़ा और पालकी जय-जय कृष्ण-कन्हाई

बाला-बाला बनी राधिका हर माँ जसुदा माई। 

गली-गली औ कुँज-कुँज है रटना एक लगाए

केवल आस तुम्हारी कान्हा अपने आशाबाद में। 

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...


आओ कान्हा तुम्हें खिलाएँ मकखनपुर की गुजिया

हीरालाल की कुल्फी खाकर बाजे खूब मुरलिया।

मामा होटल गजक जैन की या मिठ्ठन के पेड़े

और नहाना हो तो चलना नहर झाल तुम जेड़े।

जमुना जी कर रहीं किलोलें सोफीपुर के तट पर

आजा गायें चराएँ ग्वाला चलकर मुस्ताबाद में।

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...


मात करौली से होकर फिर गुफा वैष्णो जाना

भूड़ा पर बैठे बालाजी आकर लड़्डू खाना।

फरिहा हो जाना जसराना और वहाँ से पाढ़म

अपने वंशज जन्मेजय का देखना कुण्ड विहंगम।

सिरसागंज और मटसेना राह तुम्हारी ताकें

नाम तुम्हारे काॅलेज ए के ठीक शिकोहाबाद में।

आजा ओ गोपाल फिरोजाबाद में...

©️ सुकुमार सुनील

गीत : हाथों की बेरंग लकीरों में रँग भरने वाले हो

 04-09-2023


आप जगत की सब खुशियों के सर्जक बड़े निराले हो

हाथों की बेरंग लकीरों में रँग भरने वाले हो।


होठों पर मुस्कान बाँटने सब पीड़ाएँ पीते 

परहित में ही अधिक स्वयं को थोड़ा-थोड़ा जीते।

पग-पग पर मर्यादाओं की रह  लक्ष्मण रेखा में 

कुम्भकार की भाँति घड़े मिट्टी के गढ़ने वाले हो। 

हाथों की बेरंग लकीरों में...


अँधियारों में राह सुझाते दिव्य दृष्टि के दाता

हर भटकन में बन आ जाते मात-पिता-गुरु-भ्राता।

युग-उपवन को आप बनाते सुमनों का संसार 

जन्म न देते किंतु आप ही जीवन देने वाले हो।

हाथों की बेरंग लकीरों में...


तत् त्वम् पूषण् अपावृणु से चल अमृतम् गमय तक

धरती-अंबर चीर ले गए चंद्रयान तुम त्रय तक।

होते होंगे ईश धरा पर किंतु आप जगदीश

अक्षर-अक्षर दीप बनाकर ज्योति जलाने वाले हो।

हाथों की बेरंग लकीरों में...

©️ सुकुमार सुनील

रविवार, 3 सितंबर 2023

गीत : देखो यह स्वर्णिम भारत है

 कश्मीर की केसर क्यारी की कलिका से विकसित गंध मधुर

लद्दाख-लेह श्वेताभ-शिखर  प्रसरित कर आभा रजत प्रचुर।

हिम-आँचल की छवि छटा प्रवर प्रकृति-पूरित शुभ स्वप्नलोक

पंजाब की धानी चूनर की शक्ति को सकता कौन रोक।


चंडीगढ़ चंड़ी रूप धरे शुचिता से पूरित सरल विमल, यह आर्यभूमि का भाल तिलक

उठकर बैठो आँखें खोलो जागो देखो नव भारत है, देखो यह स्वर्णिम भारत है।


हर्यांगण का बल तेज विपुल दिल्ली का दिल है बहुत बड़ा

कल-कल करतीं गंगा-यमुना देवत्व संजोए देवधरा। 

हों राम कृष्ण या देव बुद्ध अवतरण भूमि उत्तर प्रदेश 

उर पर धारे अपना बिहार नालंदा के शुभ चिह्न शेष।


वक्षस्थल जिसका खनिज लोक अभ्रक का स्वामी झारखण्ड गौरव हैं पारसनाथ यहाँ

है कलाकुंज पश्चिम बंगाल काली की पूजा बेमिसाल, पत्थर में जैसे पारस है।


पीठों पर लादे टोकरियाँ असमी अल्हड नव बालाएँ

बागान चाय के दिखते ज्यों नग की ग्रीवा में मालाएँ। 

अरुणाचल सूरज से करता बातें आँखों में आँख डाल 

मणिपुर भारत के वाम-हस्त शोभे बन मणियों ढली ढाल। 


मेघालय मेघों का निर्झर करुणालय करुणा मूरत का बहती ममता की निर्झरिणी 

मोहनी मिजोरम की छवि है चोटी-चोटी शृंगार सजी दुल्हन सी आभा राजित है।


त्रिपुरा बन त्रिपुर-सुंदरी सा सम्मोहित करता प्राण अहा!

सिक्किम ज्यों बना मुकुट शोभित कंचनजंगा के शीर्ष महा।

हैं विविध भाँति के पशु - पक्षी कूँजित ये नागालैंड भूमि

सातों बहिनें स्वागत करतीं आपस में माथा चूम-चूम।


डटकर लड़ता है जंग स्वयं सागर से रह-रह टकराता यह  राज्य उड़ीसा वक्ष तान

लोहे सा साधे स्वाभिमान 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'

करता चरितार्थ कहाबत है।


है मध्य प्रदेश दलहन नरेश खजुराहो सँग साँची स्तूप

राजस्थानी माटी पावन खेले हैं अगणित यहाँ भूप।

गुजरात की शोभा गाँधी जी कर दिया पटेल ने देश एक

ललकार शिवाजी की गुंजित महाराष्ट्र लड़ाका वीर नेक।


गोवा के बीचों की मस्ती कर्नाटक है तकनीक श्रेष्ठ तेलंगाना की काँस्य कला

आंध्रा में तिरुपति बालाजी हरते हैं सबके ही क्लेश केरल  प्राकृतिक इबारत है। 


चरणारबिंद में तमिलनाडु है धाम पुण्य रामेश्वरम 

जाने कितनी संस्कृतियों का पुडुचेरी है अनुपम संगम। 

इत अंडमान उत लक्षद्वीप वह दमन और वह दीव अहो! 

दादरा औ नगर हवेली की शोभा कितनी है दिव्य कहो! 


माथे पर हिमगिरि मुकुट धरे चरणों को सिंधु पखार रहा लहरों से नज़र उतार रहा

यह है देवों की जन्मभूमि बंशीवट यमुनातट नर्तन 

महावीर है यही तथागत है। 

 ©️सुकुमार सुनील

सोमवार, 21 अगस्त 2023

गीत : जी लो तो जी लो

 बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो

वरना किसको यहाँ पड़ी कि  तुम खा लो पी लो।


बदल रहे हैं युग, युग के सँग युग की तस्वीरें 

बढ़ी मशीनें किन्तु घटी हैं आपस की पीरें। 

कौन कहाँ रखता है चिंता किसकी आपस में 

फटे गूदड़ी अपनी खुद ही सीं लो तो सी लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो... 


पहले ताप किसी को आती सब आ जाते थे

बैठ के ताऊ पड़ोस वाले सिर सहलाते थे।

आज शोक में भी  बैठे हैं रंजिश मान बड़ी

कौन पूछता है पानी की पी लो तो पी लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...


दो हिस्सों में बँटा किंतु फिर कुनबों में टूटा

धीरे-धीरे गाँव बेचारा घर-घर में फूटा।

एकाकी हो गए सभी को बस अपनी चिंता

कंठ कलेऊ कहाँ उतरता ली लो तो ली लो।

बहुत कठिन है जीवन भैय्या जी लो तो जी लो...

©️ सुकुमार सुनील

गीत : गगन से बरस रहा है प्यार

 झमाझम बारिश की रफ़्तार

कि धरती गाए गीत-मल्हार।

लताएँ हिल-मिल करें किलोल

गगन से बरस रहा है प्यार।। 2


सजन आओगे आस नहीं

धैर्य अब बिल्कुल पास नहीं।

राह मेघों ने कीं अवरुद्ध

साँस का छिड़ा साँस से युद्ध।


न कोई और यहाँ अवलम्ब

करूँ बस बूँदों से अभिसार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


ये कदली आम गुलाबी फूल

चिढ़ाए भ्रमर कली पर झूल।

मिलन की लागी ऐसी लगन

पीहु पपिहा की भरती अगन।


अगन जो मन को करती मगन

बनाती यादों को त्योहार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


भरे हैं नदी-नबारे-ताल

ताल जो मन को करे अताल।

न भाती कजरी और न गीत

पुकारे चाह मीत ही मीत।


मीत तुम भूले कैसे प्रीत?

प्रीत की कर दो आ बौछार।

गगन से बरस रहा है प्यार....


चूहती ओसारे से बूँद

देखकर लेती आँखें मूँद।

सालता आँसू का आभास

नयन से तेरे ओ मधुमास!


मास यह बीता जाए खास

बहा दो आकर तुम रसधार।

गगन से बरस रहा है प्यार...


©️सुकुमार सुनील

Exam Preparation – परीक्षा की तैयारी और AI से सफलता का नया रास्ता | Smart Study Tips

 Exam Preparation – परीक्षा, पढ़ाई और AI : सफलता की नई क्रांति प्रस्तावना परीक्षाएँ हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चाहे स्कूल- कॉले...