एक बार फिर आई होली
अधर-अधर मुस्काई होली।
टूटे सूप ढरा निकले हैं
फटे बाँस तक गा निकले हैं।
धरें टोकना सिर पर टूटे
सा रे गा मा पा निकले हैं।
बरस रहे हैं रँग के बदरा
नाचे पी ठंडाई होली।
एक बार फिर आई होली...
खाली सारी हुई नालियाँ
अम्मा नाचें मार तालियाँ।
शोभें शुभ-आशीष सरीखीं
भाभी की रंगीन गालियाँ।
शैशव-योवन और बुढापा
छान भाँग हुरियाई होली।
एक बार फिर आई होली...
आज तुम्हारे कल मेरे दर
बारी-बारी से सबके घर।
रात-रातभर कई दिनों तक
ढोलक झाँझ दिखाते तेबर।
मँझले भैय्या ने सपने में
मेरे आकर गाई होली।
एक बार फिर आई होली..
पूरनमासी आज हो गई
पड़वा को बँध गई चौपई।
घर-घर घूमे नाचे-गाए
हर अनबन तकरार खो गई।
और दौज को सबने हिलमिल
करी जुहार मनाई होली।
एक बार फिर आई होली...
नैन-नैन पर है मदहोशी
अकबर जैकी या हो जोशी।
रंग-अबीर-गुलाल मल रही
हलचल में साधे खामोशी।
नई बहू की झीनी चूनर
रंग परत शरमाई होली।
एक बार फिर आई होली...
लिपे-पुते आँगन बिगरे हैं
हुरदंगा आए सिगरे हैं।
बरस बाद अवसर के पाए
हेला अपनी पर उतरे हैं।
करें काज अनकरने छैला
इनको दूध-मलाई होली।
एक बार फिर आई होली...
©️ सुकुमार सुनील
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