क्यों करें संकल्प क्यों सौगंध खाएँ
क्यों अकारण हम किसी देवालय जाएँ।
क्यों दिलाएँ एक-दूजे को भरोसा
जा चुका बेशर्त है जब दिल परोसा।।
क्यों कोई बहती नदी साक्षी बने प्रिय
क्या हमारा प्यार गंगाजल नहीं है?
गंध मकरंदी छुअन में है तुम्हारी
नयन में डूबी हुई है झील खारी।
दल गुलाबों के अधर से झर रहे हैं
सिंधु आँचल में किलोलें कर रहे हैं।
क्यों करें लहरों से जा अठखेलियाँ हम
क्या तुम्हारा मन बहुत चंचल नहीं है?
क्या हमारा प्यार...
अब करें किस शुभ घड़ी की हम प्रतीक्षा
शेष है अब कौन सी दूभर परीक्षा।
क्या हमारी चेतनाएँ कह रहीं हैं
मीत क्या हम एक-दूजे के नहीं हैं ।
क्यों किसी सद्गंथ के हम मंत्र बाचें
क्या हमारी आत्मा निश्छल नहीं है?
क्या हमारा प्यार...
यज्ञ क्या होगा कोई इस प्रेम से बढ़
वेद की पावन ऋचाएँ नयन से गढ़।
मौन आहुति स्वाँस की पल-पल लगी है
भावना उपवास में निश-दिन जगी है।
और क्या होगा सुफल उस स्वर्ग में प्रिय
क्या तुम्हारा नेह तुलसी-दल नहीं है?
क्या हमारा प्यार...
©️ सुकुमार सुनील
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