1-12-2022
कर दिए अर्पित, शिवालय पर, तुम्हारे पत्र सारे
प्रेम को पूजा, समझकर जी रहा हूँ।
है दृगों में ओम जो ऊपर लिखा था
अक्श वह हर जो कि पढ़ने में दिखा था
हैं छपे स्मृति पटल पर कृष्ण-राधा
नित्य जो संबोधनों में सतत साधा
याम आठों दिव्यरस अनुभूतियों का
सहज ही श्रद्धा सहित मैं पी रहा हूँ।
प्रेम को पूजा समझकर जी रहा हूँ।...
बैठकर इकटक लगन जो थी लगाई
बन गई इस जन्म की सच्ची कमाई
ध्यान कोई धर न पाया हूँ अलग से
सोचकर तुमको विलग होता था जग से
पाई थी तल्लीनता पढ़ चिट्ठियों को
कल्प से हूँ ध्यानरत अब भी रहा हूँ।
प्रेम को पूजा समझकर जी रहा हूँ ।...
भाव की तह तक न मैं था पहुँच पाया
इसलिए हर भाव प्रभु-पद में चढ़ाया
हो गया हर अश्रु गंगाजल सरीखा
ज्यों बसा हर साँस में शुचि ज्ञान गीता
बह रहा है प्राण में संगीत अविरल
गीत का अतृप्त अभिलाषी रहा हूँ।
प्रेम को पूजा समझकर जी रहा हूँ ।...
©️ सुकुमार सुनील
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