*सजल*
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समांत- आता
पदांत- है
मात्राभार- 16
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बस अब मुझे मौन भाता है
और नहीं बोला जाता है
प्रश्न प्रतीक्षारत हैं सारे
उत्तर कौन कहाँ पाता है
आत्ममुग्ध हो गए सारथी
रथ विरुदावलियाँ गाता है
दाने-दाने को भटके जन
तीतर स्वर्ण-भस्म खाता है
लगा नारियल कर बंदर के
झूठ सत्य पर मुस्काता है
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©️सुकुमार सुनील
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