😢😢😢
अमानवीयता कुकृत्य के सभी चरम गये
तुमको जानवर कहा तो जानवर सहम गये ।
चीख जल गयी कराह राख में दबी मिली
अस्मिता गयी कि अस्मिता के सब भरम गये।
सबाल जोकि लाजिमी थे उठ खड़े हुए मगर
जवाब में कहर मिला कि तुम गये औ हम गये ।
मज़हबों को राजनीति ने इस तरह छला
आदमी से आदमी के कायदे-नियम गये।
उड़ रहीं हैं इज्ज़तों की धज्जियाँ सरे- बजार
हिफाज़तों में जो बढे कदम कि दो कदम गये।
प्यार की पवित्रता का पृष्ठ तक न पढ सके
क्रूर-कृत्य करने छोड़ लाज हर शरम गये।
सभ्यता के तुंग भाल पर लिखा था हिंद आज़
"सुकुमार'' अंग-अंग में अनंग रम गये।।
©️ सुकुमार सुनील
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