जानते हैं सब तुम्हें कितने भले हो?
तुम सदा ही भीड़ में छिपकर चले हो।
काम करने का सलीखा तक नहीं है
रोल मॉडल खाम-ए-खां बनने चले हो।
हाँकते थे डींग कि आफताब हैं हम
जुगनुओं से ज्यादा तुम कब जले हो?
हो गया बस भी करो अब कद्रदानो
छल रहे हो जिनके टुकड़ों पर पले हो।
हाँ सही है आज के तुम देवता हो
बात पर टिकते नहीं हो दोगले हो।
मौत छूकर मर गई कितनी दफ़ा उफ्फ
सुकुमार ऐसे खूब साँचे में ढले हो।
©️ सुकुमार सुनील
1 टिप्पणी:
शानदार
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