मन के हारे हार, जीत है मन के जीते से
हम आशा के अक्षय-पात्र कब रीते? रीते से।
हाँ सच है कंटकाकीर्ण है टहनी-टहनी पर
एक सिरे पर इसके ही खुशबू बहती झर-झर।
मीत प्रतीक्षा के क्षण किसको कब देते हैं चैन?
पल-पल व्याकुल हृदय संग तकते राहें दो नैन।
सहज कहाँ जीवन बगिया में प्रिय गुलाब का खिलना
आए किन्तु बहार समय रितु दुर्दिन बीते से।
सदा समस्या लेकर आती कोई नूतन सीख
सीख सीखकर सीख भला क्यों माँग किसी से भीख?
झंझाओं को ही सह पादप पाते हैं जल-वृष्टि
बुनी हुई यह झंझाओं से मीत समूची सृष्टि।
रिमझिम-रिमझिम बरसेंगीं अनुपम अमृत की लड़ियाँ
तपकर ज्येष्ठ-धूप ही सावन होते तीते से।
आँसू का अनमोल खज़ाना खो मत बने उदास
पाँच कर्म और पाँच ज्ञान के आयुध अपने पास।
दिशा निर्देशक मिले साथ में निज बल बुद्धि विवेक
और खड़ा पर्दे के पीछे अनुपम मालिक एक।
मिली किसी को कहाँ समय से पूर्व हार और जीत
पककर मधुर हुआ करते हैं फल सब फीके से।
©️ सुकुमार सुनील
4 टिप्पणियां:
प्रेरणाप्रद गीत मधुरिम भी
मनोरम एवं प्रेरणाप्रद गीत
बहुत-बहुत हार्दिक आभार व धन्यवाद 🙏
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद व आभार 🙏🙏🙏
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