जब-जब तुम्हें पुकारा माँ
तुमने आ पुचकारा माँ।
कहने को तुम साथ नहीं पर
शाश्वत साथ तुम्हार माँ।।
जब-जब मैं अटका भटका हूँ
दुबिधा सूली पर लटका हूँ।
तब-तब गोदी में सिर रखकर
तुमने मुझे दुलारा माँ।
चिंता ने आकर ललकारा
या पथ बाधा ने दुत्कारा।
शीतल सा महसूस किया तब
सिर पर हाथ तुम्हारा माँ।
हर उलझन से भरी घड़ी में
पीड़ाओं की सतत झड़ी में।
राहत वाली मरहम लेकर
तुम ही बनीं सहारा माँ।
तुम ही साँसों की संचालक
तुम ही प्राणों की प्रतिपादक
जीवन की इस विषम नदी में
तुम ही एक किनारा माँ।
जब-जब तुम्हें पुकारा माँ....
©️ सुकुमार सुनील
4 टिप्पणियां:
👌🏻👌🏻
Ati sundar pankti
बहुत-बहुत हार्दिक आभार 🙏
बहुत-बहुत हार्दिक आभार व धन्यवाद 🙏
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