बुधवार, 16 नवंबर 2022

गीत (अब ढूँढ रहे हैं नयन उन्हें)

 अब ढूँढ रहे हैं नयन उन्हें क़ातर नज़रों से रो-रो कर ।

इस आज़ादी को थमा हमें जो चले गए खुद को खो कर।।


वे सच्चे राष्ट्रभक्त जिनकी रग-रग में राष्ट्र समाया था

तन-मन-धन और जीवन क्षण-क्षण प्रति काम राष्ट्र के आया था

कुछ अग्निवेश कुछ नीर-विमल कुछ भीष्म और कुछ अर्जुन थे

तो तोड़ा कुछ ने चक्रव्यूह रण में अभिमन्यु हो हो कर।


जब तक सीने में जान  रही शुचि अधरों पर मुस्कान रही

जिव्हा पर अंतिम क्षण वंदे मातरम् जय हिंदुस्तान रही

वे मातृभूमि के मतवाले  शुचि स्वयं सुमन थे अर्चन थे

निज प्राणों को ही पिरो गये इस राष्ट्रमाल में धो-धो कर।


हो गया तिरंगा धन्य जिन्हें पाकर गंगा तक हुई विमल

वे शिलालेख स्वर्णिम अक्षर लिख धरा जिन्हें यह हुई सुफल

इतिहास के मटमैले पन्ने पा हुए कि जिनको कंचन थे

जो राष्ट्रप्रेम के बीज गये मन की वसुधा में बो-बो कर।

अब ढूँढ रहे हैं नयन उन्हें क़ातर नज़रों से रो-रो कर ।

©️ सुकुमार सुनील 

4 टिप्‍पणियां:

Sukumar Sunil ने कहा…

अभिनंदन है 💐

Anita ने कहा…

Bht khoob

बेनामी ने कहा…

Nice

बेनामी ने कहा…

👌👌

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