अरुण अधर पर प्रवल प्यास है।
पैरों में बेड़ियाँ पडी हैं
मुझको लेकिन चलना होगा।
उच्छवास की तप्त ज्वाल पर
जैसे खुद को तलना होगा।
पूर्व, जन्म से ही मर जाए
उसको प्रीति नहीं कह सकते।
बिन स्वासों के स्पन्दन भी
ये गतिमान नहीं रह सकते।
पाकर ही विश्राम करेगी
उर से जागी मधुर आश है....
राहों को अवरुद्ध करें जो
युग के बाँध ढहें ढह जाएं।
अंतस के अविरल सम्बोधन
कैसे बिना सुने रह पाएं?
आहों की आबाज सुनूँ तो
सन्मुख तेरी छवि आती है।
चाह बाबरी हो पल प्रतिपल
तेरे गीत-गज़ल गाती है।
जलता तुम कहदो मरुथल पर
मेरे दृग में मधुरमास है.....
आओ मिलकर पर्व मनाएं
मन में दीपावली जली है।
शांत भुवन में क्यों चुप बैठें
महकी-महकी गली-गली है।
व्यर्थ न जाने दो यह धुन जो
दिल के इकतारे ने छेडी।
जीने दो इन अरमानों को
माना राह बहुत है टेडी।
अंधकार! इससे क्या डरना?
अंदर अपने जब प्रकाश है।...
अरुण अधर पर प्रवल प्यास है।...
@ सुकुमार सुनील
4 टिप्पणियां:
Very very nice
बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद मैम 🙏
लाजवाब
बहुत-बहुत हार्दिक आभार 🙏 😊
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