रविवार, 11 दिसंबर 2022

ग़ज़ल (उम्मीद जगाए रखता है)

 उम्मीद जगाए रखता है... 


वो जो मन में आग लगाए रखता है

श्वासों का संगीत सजाए रखता है।


जब-जब धैर्य बाँध टूटे अड़ जाता है

यानी इक उम्मीद जगाए रखता है।


शुष्क रेत उड़ने लगता शीतल तट पर

पत्थर पिघला नीर बहाए रखता है।


उसका तो अस्तित्व स्वयं ही चंदन है

मेरे 'मैं' से मुझे बचाए रखता है।


पल-पल वह सुकुमार खड़ा है साथ मेरे

हर विपदा में पाँव जमाए रखता है।

©️सुकुमार सुनील

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